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Friday, February 25, 2011

कविता पुकार भी है, प्रार्थना भी

कविता के कई रंग और कई स्वर होते हैं- मसलन, वह पुकार भी हो सकती है और प्रार्थना भी। ऐसी ही दो छोटी कविताएं पढि़ए उर्दू के जाने-माने कवि कुमार पाशी की...

मैं हंसना चाहता हूं

मैं समुंदर जितना हंसना चाहता हूं
और बूंद जितना रोना

ईश्वर!
मैं सिर्फ तेरे ही जितना
जीना चाहता हूं,
नित नए सपनों के साथ
अपनों के साथ

ईश्वर!
मैं पैगंबर नहीं हूं
बिल्कुल तेरी तरह हूं
मेरी ख्वाहिशों की फेहरिस्त
बड़ी लंबी है
तेरी फेहरिस्त से भी तवील-

लेकिन मैं
ईश्वर से क्यों मुखातिब हूं?
जब कि मुझे मालूम है
वो मुझे फूल जितना हंसाएगा
और फिर
आसमान जितना रुलाएगा

क्या दे सकते हो?

किसी को क्या दे सकते हो तुम!
चांद किसी को दे सकते हो?
तारे--?
या फिर जगमग जुगनू किसको दे सकते हो?
सूखी शाख को हरा-सा पत्ता
प्यास को शबनम का इक कतरा
बुझी-बुझी-सी आंख की ज्योति
भूख को रोटी--
दे सकते हो?
मुझे बताओ :
धूप को साया दे सकते हो?
दश्त को दरिया दे सकते हो?
तीन सौ पैंसठ दिनों में मुझको
इक दिन अच्छा दे सकते हो?

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