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Tuesday, February 22, 2011

यह कविता रूला देगी!

कुमार पाशी आधुनिक उर्दू  कविता के बहुत ही संवेदनशील और बड़े कवियों में एक रहे। 4 जुलाई 1935 को पाकिस्तानी हिस्से वाले बगदाद उल जदीद में पैदा हुए शंकर दत्त उर्फ कुमार पाशी देश विभाजन के बाद भारत चले आए। पहले जयपुर में फिर दिल्ली आ बसे। 17 सितम्बर 1992 को उनका इंतकाल हुआ। पढि.ए उनकी एक कविता, जो रूला-रूला देती है...

मैं अच्छी लड़की हूं/ कुमार पाशी
पापा, मैं तिरे घर की बांदी

मैंने अपने सत्रह बरस में
गुड़ियों से कै दिन खेला है
मैंने तो बस सत्रह बरस तक
तेरे घर का चौका-बर्तन साफ किया है

इन हाथों से छूकर तुझे जगाती थी मैं
रात का भोजन सबको खिलाकर
बचा-खुचा कुछ खाती थी मैं
मम्मी, पापा, भाई और बहनों के सिवा तो
मेरी इन आंखों ने किसी को
आज तलक देखा भी नहीं है
तेरे घर की डूयोढ़ी के बाहर तो अकेले

मैंने कदम रक्खा भी नहीं है
मैं क्या जानूं
मिरा पड़ोसी कौन है पापा!
सचमुच रोज सहर ने मुझको
चौके-चूल्हे में देखा है
रात भी मुझको
चौके में मसरूफ देखकर सो जाती थी
तेरे घर की दीवारों से बाहर पापा कब जाती थी
क्या जानूं इस जनम में मैंने
कौन-सा ऐसा पाप कमाया
सत्रह बरस तक तूने मुझको
मेरे हर लम्हे में देखा
फिर भी मुझे तू समझ न पाया

तू अभिमानी है ये सच है
मैं भी तो अभिमानी पापा की बेटी हूं
देख मुझे मैं- तेरी खातिर
अग्नि मां के
सुंदर, शीतल, मीठे शोलों में लिपटी हूं
पापा-
मैं अच्छी लड़की हूं।

8 comments:

  1. बहुत मार्मिक कविता| धन्यवाद|

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  2. पापा-
    मैं अच्छी लड़की हूं।
    मार्मिक कविता, धन्यवाद.....

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  3. सबसे पहले तो आप मेरा बधाई स्वीकार करें इतने गहरे भाव समेटे लाजवाब रचना को हमारे समकक्ष रखने के लिए । ओह पहली बार इतनी मार्मिक रचना पढने को मिली सच कहा आपने रुला देगी कविता ।

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  4. मार्मिक रचना। आभार।

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