साधारण जीवन के असाधारण कवि हैं त्रिलोचन। उनके काव्य संसार में मामूली कही और समझी जानेवाली चीजें और जीवन स्थितियां चमकती, बल्कि कौंधती हैं। उनकी कविता हमें थोड़ा और मनुष्य बना सकती है, अगर हम बनना चाहें। पढि.ए यह कविता...
सब्जी वाली बुढि.या
त्रिलोचन
मेथी और पालक की
दो-दो हरी गडिडयां
लस्सन और प्याज की
चार-चार पोटियां
बुढि.या कह रही थी
ग्राहक से...
ले लो
यह सब
ले लो
कुल पचास पैसे में
ग्राहक बोला-
जो कुछ लेना था
ले चुका
यह सब क्या करूंगा
रखने की चीज नहीं
बुढि.या ने सांस ली
और कहा-
दिन हैं ये ठंड के
ले लो
तो मैं भी घर को जाऊं
गाहक ने सुना नहीं
और दाम चुकाकर
चला गया।
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