हिन्दी कविता के आधुनिक कबीर, जनकवि नागार्जुन का जन्मशती वर्ष है यह। 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के तरौनी गांव में जन्मे बाबा नागार्जुन ने गांव से निकल कर देशभर में खूब यायावरी की थी। अनेक जनांदोलनों में उन्होंने भाग लिया था और जनजीवन के संघषों से खुराक लेकर जिस कविता-संसार का उन्होंने निर्माण किया, वह आज भी हमें प्रेरणा देता है। प्रस्तुत है 1939 में लिखी उनकी एक अत्यंत चर्चित कविता...
उनको प्रणाम/ नागार्जुन
जो नहीं हो सके पूर्ण-काम
मैं उनको करता हूं प्रणाम।
कुछ कुंठित औ कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए,
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए!
- उनको प्रणाम!
जो छोटी-सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि पार,
मन की मन में ही रही, स्वयं
हो गए उसी में निराकार!
- उनको प्रणाम!
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह-रह नव-नव उत्साह भरे,
पर कुछ ने ले ली हिम-समाधि
कुछ असफल हो नीचे उतरे!
- उनको प्रणाम!
एकाकी और अकिंचन हो
जो भू-परिक्रमा को निकले,
हो गए पंगु, प्रति-पद इतने
अदृष्ट के दांव चले!
- उनको प्रणाम!
कृत-कृत्य नहीं जो हो पाए
प्रत्युत फांसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं, फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल!
- उनको प्रणाम!
थी उग्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ,
थी जन्म-काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ!
- उनको प्रणाम!
दृढ़ व्रत औ दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति-मंत,
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत!
- उनको प्रणाम!
जिनकी सेवाएं अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर-चूर!
- उनको प्रणाम!
Bahut bahut sunder aur manujta ke Dil ke kareeb hai yah kavita baba nagarjun ki. Aap ko dhanyavaad.
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