तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ-साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ-साथ
बचपने का साथ है, फिर एक-से दोनों के दुख
रात का और मेरा आंचल भीगता है साथ-साथ
वो अजब दुनिया कि सब खंजर-ब-कफ फिरते हैं और
कांच के प्यालों में संदल भीगता है साथ-साथ
बारिशे-संगे-मलामत में भी वो हमराह है
मैं भी भीगूं, खुद भी पागल भीगता है साथ-साथ
लड़कियों के दुख अजब होते हैं, सुख उससे अजीब
हंस रही हैं और काजल भीगता है साथ-साथ
बारिशें जाड़े की और तन्हा बहुत मेरा किसान
जिस्म और इकलौता कंबल भीगता है साथ-साथ
ek badee shayaraa kee dilko chhoo lene vali rachanaa pesh karane ke liye dhanyavaad.
ReplyDeletebahut he sundar
ReplyDeletemara blog http://www.sarapyar.blogspot.com/