साथ-साथ

Tuesday, July 20, 2010

बरसात पर परवीन शाकिर की एक गजल

तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ-साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ-साथ

बचपने का साथ है, फिर एक-से दोनों के दुख
रात का और मेरा आंचल भीगता है साथ-साथ

वो अजब दुनिया कि सब खंजर-ब-कफ फिरते हैं और
कांच के प्यालों में संदल भीगता है साथ-साथ

बारिशे-संगे-मलामत में भी वो हमराह है
मैं भी भीगूं, खुद भी पागल भीगता है साथ-साथ

लड़कियों के दुख अजब होते हैं, सुख उससे अजीब
हंस रही हैं और काजल भीगता है साथ-साथ

बारिशें जाड़े की और तन्हा बहुत मेरा किसान
जिस्म और इकलौता कंबल भीगता है साथ-साथ

2 comments:

  1. ek badee shayaraa kee dilko chhoo lene vali rachanaa pesh karane ke liye dhanyavaad.

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  2. bahut he sundar

    mara blog http://www.sarapyar.blogspot.com/

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