साथ-साथ

Wednesday, March 17, 2010

रघुवीर सहाय की तीन कविताएं

आज की कविता ने अपनी राह के लिए जिन पूर्ववर्ती कवियों से रोशनी पाई है, उनमें रघुवीर सहाय बेहद महत्वपूर्ण हैं। यहां उनकी तीन छोटी कविताएं प्रस्तुत हैं-

।। मेरी बेटी।।

दुबली थकी हारी एक छोकरी काम पर जाती थी
दूर से मैंने उसे आते हुए देखा
पर जितनी देर में मैंने पहचाना वह मेरी ही बेटी थी
उतनी ही देर में कितनी बदल गई।

।। अंग्रेजी।।

अंग्रेजों ने अंग्रेजी पढ़ाकर प्रजा बनाई
अंग्रेजी पढ़ाकर अब हम राजा बना रहे हैं।

।। बदलो।।

उसने पहले मेरा हाल पूछा
फिर एकाएक विषय बदलकर कहा आजकल का
समाज देखते हुए मैं चाहता हूं कि तुम बदलो
फिर कहा कि अभी तक तुम अयोग्य साबित हुए हो
इसलिए बदलो,
फिर कहा पहले तुम अपने को बदलकर दिखाओ
तब मैं तुमसे बात करूंगा।

1 comment: