साथ-साथ

Monday, March 15, 2010

सिर्फ एक कौवा

अरविंद चतुर्वेद

सिर्फ एक कौवा
क्रां-क्रां करता
कबसे मुंडेर पर बैठा
बड़े गुस्से में चोंच से खुरच रहा है धूप

बुद्धू कहीं के!
छाया में बैठी जीभ चाटती बिल्ली
हैरान है- धूप क्या कोई चमकौवा कागज की पन्नी
या चांदी की पत्तर है
जो खुरचने से छूट जाएगी?
खुद में परेशान हंफर-हंफर हांफता है
दमे के मरीज-सा
गली में गीली जमीन पर पसरा कुत्ता
बरामदे में एक अधेड़ भीगा गमछा रगड़ रहा है पीठ पर

अकेला कौवा ही इस चुभती गरमी में
धूप के खिलाफ रोषपूर्ण कार्रवाई में जुटा है
सिर्फ अकेला कौवा ही

सिर्फ कौवा ही अकेले नहाएगा बारिश में
अगर बच पाए
किसी छाता कंपनी या कूलर निर्माता का
मॉडल बनने से!

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