साथ-साथ

Tuesday, March 2, 2010

संगतकार दोस्तों

संगतकार दोस्तों
अब इस ब्लॉग पर अपनी पसंद की दूसरे कवियों की कविताएं पढ़ाने का सिलसिला शुरू कर रहा हूँ. बीच-बीच में अपनी कविताएं भी आपकी सेवा में पेश करता रहूँगा. होली की बधाई के साथ लीजिये पढ़िए बाबा नागार्जुन की कविता. यह कविता है तो १९५० की, लेकिन अगर आज भी मौजूं लगे तो इसका मतलब हुआ कि देश की आबोहवा को आज भी बुनियादी बदलाव का इंतजार है .....

बाकी बच गया अंडा
नागार्जुन

पांच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गए चार
चार पूत भारत माता के, चारों चतुर प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गए तीन
तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गए दो
दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक
एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा
पुलिस पकड़ के जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा. 

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