साथ-साथ

Thursday, March 4, 2010

बानगी है यह !

देश आजाद हुआ १९४७ में और भारतीय गणतंत्र प्रतिष्ठित हुआ २६ जनवरी १९५० को. लेकिन तभी से सत्तारूढ़ दल की छत्रछाया में भ्रष्टाचार और तस्करी का मर्ज भी पैदा हो चुका था. इसलिए यह नहीं मानना चाहिए कि यह कोई हाल-फिलहाल की बीमारी है. बानगी के तौर पर १९५३ में लिखी कवि नागार्जुन की यह कविता पढ़िए :
नया तरीका
नागार्जुन
दो हजार मन गेहूं आया दस गावों के नाम 
राधे चक्कर लगा काटने सुबह हो गई शाम 
सौदा पटा बड़ी मुश्किल से पिघले नेताराम
पूजा पाकर साध गए चुप्पी हाकिम - हुक्काम 
भारत - सेवक जी को था अपनी सेवा से काम 
खुला चोर बाज़ार, बढ़ा चोकर - चूनी का दाम 
भीतर झुरा गई ठठरी, बाहर झुलसी चाम 
भूखी जनता की खातिर आज़ादी हुई हराम.

नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल 
बैलों वाले पोस्टर साटे, चमक उठी दीवाल 
नीचे से लेकर ऊपर तक  समझ गया सब हाल
सरकारी गल्ला चुपके से भेज रहा नेपाल
अन्दर टंगे पड़े हैं गाँधी-तिलक-जवाहर लाल
चिकना तन, चिकना पहनावा, चिकने-चिकने गाल
चिकनी किस्मत, चिकना पेशा, मार रहा है माल
नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल.

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