धूप इतनी असरदार तो है ही
कि उम्र को लगे
और सपने जगा दे
यूं ही नहीं
फैक्टरी में ईंट ढोते-ढोते
सुस्ताने के वक्त
पसीने में तर-ब-तर
मनोहर ने खाया था पान
और बसंती मुस्कुराई थी
बूढ़े हरखू की
जवान बेटी की
रात-दिन की सूखी चिंता
आखिर ख़त्म हो गयी
हरखू सोचते हैं
सुस्ताने के वक्त
तर-ब-तर पसीने में
बेटी थी - पराई थी
और, संतोष की सांस लेते हैं
धूप इतनी असरदार तो है ही !
अच्छी रचना !!
ReplyDeletenice sir
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत उम्दा भाव!
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