साथ-साथ

Friday, February 12, 2010

पत्थर फेंका ताल में

देख लिए हम रात भी और अँधेरा घुप्प
देखे बरगद-डाल पर बैठे उल्लू चुप्प .

अपनी मुट्ठी तान तू फेंक हाथ की रेत
'अधचर खेत बचाइले, कर ले मूरख चेत.

पत्थर फेंका ताल में लगा कांपने नीर
शानदार प्रतिमा हिली रही अटारी तीर.

इसमें अचरज क्या भला पत्थर में है जान
खुले हाथ में कुछ नहीं, अब तू मुट्ठी तान.

गुलमोहर की छाँह भी देती है अब आंच
वह दिन जल्दी आयगा जब चटखेगा कांच.

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