साथ-साथ

Monday, February 1, 2010

क्या कहूं

आपको मैं क्या कहूं
या दिल कहूं - दौलत कहूं,
आप ही कहते रहें
मैं किस तरह बस चुप रहूँ !

यह मुनासिब नहीं लगता
धूप के इस गावं में
तप रहे हों जब सभी
मैं आपकी छाया सहूँ !

आपको जुकाम है
हाय यह नाजुक मिजाजी
ठण्ड से ठिठुरी हुई
यह दास्ताँ क्या मैं सहूँ !

खूब फरमाया
तुम्हारे बाग़ की खुशबू लिए
खिड़कियों के रास्ते से
जुल्फ छूकर मैं बहूँ !

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