क्या खूब रंग सरकारी !
सत्ता की माया, माया की सत्ता अद्भुत न्यारी
जिनको लोग बहिनजी कहते हुईं आज महतारी
अफसर घूमें आगे - पीछे, घूमें थैलीधारी
दलित - दुहाई हुई हवाई मची है मारामारी
स्मारक - धारक ऐसी मारक खेल रही हैं पारी
पेड़ कट गए हुआ लखनऊ कंक्रीट की क्यारी
बीते दिन की बात हो गयी यां की बाग़-बहारी
कपट - कला के कुशल खिलाड़ी बने हुए दरबारी
झपट - कला के होनहार हैं चमकदार व्यापारी
यूपी की यह चुप्पी एक दिन होगी हाहाकारी
हाथी से नीचे लुढकेगी भैया सजी सवारी !
सत्य का वर्णन किया है, किन्तु सावधान रहियेगा डीएम साहब से.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...बधाई
ReplyDelete