साथ-साथ

Friday, January 8, 2010

सुन्दर चीजें शहर के बाहर हैं

कभी - कभी ही पता लगता है
कि सुन्दर चीजें
शहर के बाहर हैं !
मसलन, ऊबे हुए
या शोर में डूबे हुए लोग
जब कहीं घूमने जा रहे होते हैं
तो शहर की चौहद्दी पार करते ही
अपना चेहरा पोंछते हैं
और एक भली - सी हवा में
लहराने देते हैं अपने बाल,
चिड़ियों के साथ झूमते - डोलते
किसी झुरमुट को देखकर पता लगता है -
वाकई सुन्दर चीजें शहर के बाहर हैं !

यह तब भी पता लगता है
जब पहली बार आप धंसते हैं
नाक पार रूमाल रखे
शहर की चौहद्दी के भीतर

यह शहर आपका स्वागत करता है
ऐसा एक बोर्ड जरूर मिलेगा शहर की चौहद्दी पर
लेकिन मन में इत्मीनान का कोई भाव जगाने के बजाय
वह धौंस जमाएगा आपके ऊपर
नाक पर रूमाल रखने के बावजूद
शहर का आतंक घुस जाएगा आपके भीतर

आप नहीं जान पाते कि वह नाक के रास्ते घुसा या कान के

कुछ ज्यादा ही शरीफ होने के चक्कर में
आप कितने दयनीय बन जाते हैं !

फिर आप बरसों शहर में रह जायेंगे
बस जायेंगे किराये का कोई कमरा लेकर
यहाँ - वहां जायेंगे
सिनेमा का, बस का, लोकल का टिकट कटायेंगे
शाहरुख़ को देखेंगे - करीना को देखेंगे
और विज्ञापन के माडल की तरह
आपको भी पता चलेगा कोमल त्वचा का राज
तब ताजगी और खूबसूरती के लिए
आपको भी भरोसा होने लगेगा किसी साबुन पर

सुबह - सुबह दाढ़ी बनायेंगे
अखबार पढेंगे
और कुढ़ते रहेंगे -
धत्तेरे की, यह भी कोई जिंदगी है !

ऐसे ही किसी वक्त
बाहर कहीं जाने का मौका मिलेगा
तब शहर की चौहद्दी पार करते ही
अपना चेहरा पोंछते हुए
आप चाहेंगे कि भर लें फेफड़ों में
सारी ताजी हवा
शायद आप भूल भी जाएँ
कि रूमाल जेब में है या नहीं
और आपको पता लगेगा -
सुन्दर चीजें शहर के बाहर हैं .

1 comment:

  1. कविता के भाव मन को छू गये। शहरों का भविष्य अंधकारमय है!!

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