साथ-साथ

Saturday, December 12, 2009

झारखंड की रात

गाँव का मालिक उनको कहता

बड़े अनाड़ी

मर्द पहाड़ी ।

हाथ में बंशी

सोई भैंस

बड़ी रात

सपनों का तैश

काँप रही जाड़े में काया

जलते ठीकरे

गरमी से लैस

दूर - दूर उठती - गिरती पर

राग पहाड़ी

थामे ताड़ी ।

मगर एक दिन

चिनगी उठी आग से

उसने बंशी के राग से

मुंह मोड़ा -

घोर अन्धेरा यह सन्नाटा

वह तोड़ेगा -

नंगे पाँव चुभ गया काँटा

बस, फेंका बंशी

कसकर मारी एक कुल्हाड़ी ।

जागा मालिक

कांपा मालिक

गरम दुशाला

ढांपे मालिक

- धीमी नाडी ।

खड़े पहाड़ी

अड़े पहाड़ी

बहुत अगाडी

बहुत पिछाड़ी

साथ खड़े थे

साथ अड़े थे -

मालिक साला

फ़ेंक दुशाला

हम नहीं अनाड़ी

मर्द पहाड़ी ।

3 comments:

  1. बहुत सही हव !

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  2. बहुत सुन्दर शब्द चित्र खींचा है। सुन्दर रचना है।

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  3. अत्यंत सुन्दर भाव...

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