साथ-साथ

Sunday, November 22, 2009

पटना से दिल्ली

यक़ीनन यह सफर

हवाई सर्वेक्षण करने वालों के लिए

हादसा नहीं है

जो अपने गाँव से बाहर

काफी दूर एक अजनबी शहर

दिल्ली तक

मुझे घसीट लाया ।

मेरे लिए दिल्ली

उतना ही अजनबी है

जितना की दिल्ली के लिए

मेरा गाँव ।

गो की पहली बार हम एक-दूजे के सामने हों

तो पहचान के लिए

सिर्फ़ एक अनजानी -सी

मुस्कराहट के सिवा और क्या हो सकता है !

यक़ीनन यह सफर हादसा नहीं है

हवाई सर्वेक्षण करने वालों के लिए

जिनका रिश्ता जमीन से

तोड़ चुका है हवाई जहाज

और जो इसके आदी हो चुके हैं ,

पटना से दिल्ली के हवाई सफर में

जब बोईंग जहाज ने

जमीन से तोड़े मेरे रिश्ते

तब सचमुच मैं काफी डर गया

एक नन्हे खरगोश की तरह ,

हादसे का यह सफर

यूँ पूरा हुआ

की बराबर बेचैनी बनी रही

कब जमीन पर दुबारा टिकेंगे मेरे पाँव !

मैं जानना चाहता हूँ

हवाई जहाज में उड़ने वाले आदमी का

पहला अहसास

क्या जमीन से रिश्ता टूटने का होता है

और पहली बेचैनी

दुबारा जमीन पर पाँव टिकाने की ?

मैं इस तरह सवार हुआ हवाई जहाज पर

की जैसे कोई चिड़िया खेत में लगी फसल के दाने पर

झपट्टा मारे

और उसे चोंच में फंसाए

आसमान में ले उड़े

मैं इस कदर गूम हुआ

हवाई जहाज में अपनी सीट पर

की जैसे ऊंचाई पर

उड़ने वाले किसी पक्षी के चोंच में

अटका अनाज का दाना ।

इस सफर में

दरअसल मैं सुन ही नहीं सका

की बाकी लोग

क्या बातें कर रहे हैं आपस में !

मैं भूल गया की

कब और किधर से

एक सुंदर लड़की मेरी सीट के पास आकर खड़ी हो गयी

उसने कहा - मैंगो जूस या और कुछ ?

मुझे अपने गाँव का आम का बगीचा याद आया

मेरे मुंह से अचानक निकला - कुछ भी नहीं

वह मुस्कराई और चली गयी

पहली बार लगा की

बचपन में मिट्टी का धेला फेंककर

पेड़ से आम तोड़ने में

आम के पेड़ कभी इतने ऊंचे न थे ।

अब मैं क्या करूँ ?

खिड़की से नीचे की तरफ़ देखा -

देखा की एक नदी है

मगर वह नदी जैसी नहीं

देखा की पहाड़ है , जंगल है , पेड़ हैं

मगर पहाड़ - जंगल - पेड़ की तरह नहीं !

देखा की गाँव है , घर हैं , आदमी हैं

मगर गाँव - घर - आदमी की तरह नहीं !

हमने देखे हैं

जमीन से

आसमान में चिड़िया की तरह

उड़ते हुए जहाज - खिलौने की मानिंद

और आज देख रहे हैं हवाई जहाज से

नदी - पहाड़ - जंगल

गाँव - घर - आदमी

सब खिलौने की तरह ,

पटना से दिल्ली के बीच

यह कैसा सफर है

की समूची दुनिया

हकीकत से दूर

खिलौना नज़र आ रही है !

गाँव में दूर मेरी बूढ़ी माँ

जो घर के कच्चे आँगन में

झाडू - बुहारू करते वक्त

धूल में खोई सुई भी ढूंढ निकालती है

और खेत में काम करते मेरे पिता

जो बैलों से भी बात कर लेते हैं

और खडी फसल की कोख में

अनाज बनते दानों की

सरगोशियाँ तक समझ लेते हैं

उनसे इस हादसे का बयान

मैं किस तरह कर सकता हूँ

- किस भाषा में ?

मैं कैसे बता सकता हूँ

की आप सब खिलौने हैं

या मैं खेत की फसल से झपट्टा मारकर

आसमान में उड़ाया गया

किसी पक्षी के चोंच में अटका अनाज का दाना !

लेकिन , यह सफर

हादसा नहीं है

हवाई सर्वेक्षण करने वालों के लिए ।

1 comment:

  1. बहुत सुंदर, हवाई यात्रा के पहले एहसास में एकदम नया नज़रिया। कितने ही रोमांच में गुम जाते हैं, आसमान की ऊंचाई पर जाकर भूल जाते हैं कि ज़मीन पर उतरना भी है। आपने एकदम भावुक उलबांसी लिखी है।

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