साथ-साथ

Sunday, September 4, 2011

रत्नेश कुमार की कुछ संवाद कथाएं

संवेदनशील लेखक-पत्रकार रत्नेश कुमार रहने वाले बिहार के हैं और नौकरी गुवाहाटी में करते हैं। नेकदिल इंसान हैं और गहरी सामाजिक समझ है उनके पास। उन्होंने अपने ढंग की विधा विकसित की है- संवाद कथा। ये संवाद कथाएं लगभग सूक्तियों जैसा असर छोड़ती हैं। प्रस्तुत हैं उनकी कुछ संवाद कथाएं...

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- हिंदू दो तरह के होते हैं।
- दो तरह के?
- हां, एक को भारत का हारना बुरा लगता है और दूसरे को पाकिस्तान का जीतना।
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- श्रमिक आदम की औलाद है।
- पूंजीपति?
- आमदनी की।
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- बंदूक से दुनिया छोटी होती है।
- बांसुरी से बड़ी।
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- दिल्ली दारू है।
- दिसपुर?
- दारू का असर।
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- तुमने हरिश्चंद्र का साथ क्यों छोड़ दिया?
- वह हमेशा सच बोलता है।
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- एक ऐसा शब्द बताओ, जिसके सामने हर शब्द छोटा और खोटा हो?
- प्रेम।
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- व्यक्ति पैर से चलता है।
- परिवार?
- प्रेम से।
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- प से पति होता है।
- पतित भी।
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- अपने भारत में संबंध के अनुसार अभिवादन है।
- उनके इंडिया में समय के अनुसार।
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- पत्नी जीवन है।
- प्रेमिका?
- जीवन का स्वाद।
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- महिला भी महिला का अपहरण करती है।
- लक्ष्मी ने सरस्वती का अपहरण कर ही लिया है।
क्रमश:

1 comment:

  1. अरविंद जी नमस्कार..रत्नेश जी हमारे अजीज मित्र हैं..जिन तथाकथित कहानियों को लेकर हम उनकी खिंचाई करते रहते हैं उसके बारे में आपके ब्लाग में तारीफ देखकर बहुत अच्छा लगा..यह भी अच्छा लगा कि आप यहीं लखनऊ में काम करते हैं..कभी मुलाकात होगी....कुमार भवेश चंद्र

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