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Saturday, August 27, 2011

जय हो लोकनायक : भीड़-भाड़ ने पुकारा

नागार्जुन
1974 में शुरू हुआ बिहार का छात्र-युवा आंदोलन लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में देखते ही देखते देशव्यापी संपूर्ण क्रांति में बदल गया था। लेकिन अंतत: उसकी परिणति व्यवस्था परिवर्तन न होकर महज सत्ता परिवर्तन बन कर रह गई और जेपी का मकसद पूरा नहीं हो सका। बाबा नागार्जुन ने 1978 में इसी को लक्ष्य कर यह कविता लिखी थी ...

जय हो लोकनायक : भीड़-भाड़ ने पुकारा
जीत हुई पटना में, दिल्ली में हारा
क्या करता आखिर, बूढ़ा बेचारा
तरूणों ने साथ दिया, सयानों ने मारा
जय हो लोकनायक : भीड़-भाड़ ने पुकारा

लिया नहीं संग्रामी श्रमिकों का सहारा
किसानों ने यह सब संशय में निहारा
छू न सकी उनको प्रवचन की धारा
सेठों ने थमाया हमदर्दी का दुधारा
क्या करता आखिर बूढ़ा बेचारा

कुएं से निकल आया बाघ हत्यारा
फंस गया उलटे हमदर्द बंजारा
उतरा नहीं बाघिन के गुस्से का पारा
दे न पाया हिंसा का उत्तर करारा
क्या करता आखिर बूढ़ा बेचारा

जय हो लोकनायक : भीड़-भाड़ ने पुकारा
मध्यवर्गीय तरूणों ने निष्ठा से निहारा
शिखरमुखी दल नायक पा गए सहारा
बाघिन के मांद में जा फंसा बिचारा
गुफा में बंद है शराफत का मारा

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