साथ-साथ

Sunday, July 24, 2011

बरसाती मौसम के निशीथ में

साधारण में असाधारण को खोज निकालना बाबा nagarjun नागाजर्न की कविता की वह खासियत है, जो उन्हें अद्वितीय बनाती है। ऐसी ही एक कविता पढि.ए...

क्रंदन भी भा सकता है / नागाजुन nagarjun

अपना न हो तो

क्रंदन भी

कानों को

भा सकता है...

स्वजन-परिजन,

चहेते पशु-पक्षी,

निकटवर्ती बगिया के

फूलों पर मंडराते

सु-परिचित भ्रमर,

किसी का आर्तनाद

दुखा जाता है मेरा दिल...

 

बरसाती मौसम के निशीथ में

सुने मैंने हाल ही

उस गरीब के चीत्कार

सांप के जबड़ों में फंसा था वो

कर रहा था

चीत्कार निरंतर

मेंढक बेचारा...

हमारी पड़ोस वाली

तलइया के किनारे...

हाय राम, तुझे-

काल-कवलित होना था यहीं!

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