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Sunday, April 10, 2011

अपने अपने राम...जाकी रही भावना जैसी

कल राम नवमी है- मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अवतरण का दिन। तुलसी दास ने बहुत ठीक लिखा है- जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी। बीसवीं सदी के आखिरी दशक में कुछ लोगों ने अयोध्या आंदोलन के बहाने भगवान राम को अपने आईने में उतारना चाहा था। उसमें कितनी मर्यादा थी, यह सवाल आज भी अपनी जगह कायम है। पढि़ए मशहूर शायर कैफी आजमी की यह नज्म-

दूसरा बनवास/कैफी आजमी

राम बनवास से लौटकर जब घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को सिरीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आए।

जगमगाते थे जहां राम के कदमों के निशां
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहां
मोड़ नफरत के उसी राहगुजर में आए।

धर्म क्या उनका है क्या जात है यह जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा यार लोग जो घर में आए।

शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर
तुमने बाबर की तरफ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की खता जख्म जो सर में आए।

पांव सरयू में अभी राम ने धोए भी न थे
कि नजर आए वहां खून के गहरे धब्बे
पांव धोए बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फिजां आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे।

2 comments:

  1. कैफ़ी आजमी की नज्म रामनवमी के सन्दर्भ में बढ़िया लगी .... सारगर्वित प्रस्तुति के लिए आभार

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  2. कैफी आजमी ने जम्मू काश्मीर, मुंबई बोंब धमाके, पाकिस्तान कि गंदी राजनीती....इत्यादी विषयो पर गर कुच्ह लिखा तो अच्छा लगेगा

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