साथ-साथ

Tuesday, March 1, 2011

अब तो पूरी शिद्ïदत से कोई लड़ता भी नहीं

राजेश जोशी हमारे वक्त के बहुत ही भरोसे के कवि हैं। उतने ही जबरदस्त गद्यकार भी। उनकी कविता जीवन-संघर्ष में शामिल हमारे बीच की वह जरूरी आवाज है, जिसे कतई अनसुना नहीं किया जा सकता। पढि़ए उनकी एक कविता...

प्लेटफार्म पर / राजेश जोशी

आवारगी के उन दिनों में जब देर रात लौटने पर
बंद हो जाते थे घरों के दरवाजे
गुजारी हमने कई-कई रातें प्लेटफार्म पर चहलकदमी करते हुए।

देर रात जब सुनसान होते हैं प्लेटफार्म और
बहुत कम गुजरती हैं रेल गाडिय़ां
दूर आसमान में टहलता रहता है बांका चांद
खाली पटरियों पर बीच में शंटिंग करते रहते हैं इंजन
ठंडी होती हुई रात के सन्नाटे में गूंजती है
इंजन की तेज सीटी और पहियों का संगीत।

ऊंघते हुए चायवाले, टिकिट कलेक्टर, इंजन ड्राइवर, गार्ड और
पटरियों की देखभाल करने वाले मजदूर हाथ में लालटेन लिए
अलग-अलग कोनों में खड़े बतियाते हैं।
उनकी फुसफुसाहटों और इक्का दुक्का यात्रियों के बीच
उस छोटे स्टेशन पर मटरगश्ती करते
गुजारी हमने कई रातें।

हर दिन लंबी होती सड़कों और बड़े होते शहरों में अब
कम होता जा रहा है चलन किसी को लेने आने या
छोडऩे जाने का।
झर रही है स्वीकृत होती जाती व्यवहारिकता में
सम्बंधों की गर्माहट आत्मीयता!

अब तो पूरी शिद्ïदत से कोई लड़ता भी नहीं
शिष्टïता के पाखंड और औपचारिकता के बीच बहुत खामोशी से
चलती है ठंडी कटुता की दुधारी छुरी।

उदासी बढ़ रही है कस्बों में और शहरों में उदासीनता!

आवारगी करते, व्यर्थ भटकते हुए प्लेटफार्म पर
हर आती-जाती ट्रेन की खिड़कियों से झांकते लोगों को हिलाए
                                                                                   हमने हाथ
दूर तक तलाशे होंगे उन लोगों ने हमारे अपरिचित चेहरों में
अपने स्वजनों के चेहरे!

दिनो दिन ठंडी होती जाती मन में बची आंच ने
कुछ पल को कुरेदा होगा जरूर
कुछ लोगों का मन!

1 comment:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (2-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete