साथ-साथ

Tuesday, March 22, 2011

पुकार भी और प्रार्थना भी

कुछ गजलें प्रार्थना के शिल्प में एक पुकार की तरह भी हो सकती हैं। ऐसी कुछ गजलें जाने-माने शायर कुमार पाशी ने भी लिखी हैं। पढि़ए उनकी यह गजल-

गजल/कुमार पाशी

जुगनू कोई जुल्मत मिटाने के लिए दे
इक ख्वाब तो आंखों में सजाने के लिए दे

ले चाक किए लेता हूं मैं अपना गिरेबां
अब दश्त मुझे खाक उड़ाने के लिए दे

हर पेड़ को शाखें कभी सरसब्ज अता कर
हर शाख को कुछ फूल सजाने के लिए दे

इक नूर फजा में है तो इक रंग हवा में
मंजर ये मुझे सबको दिखाने के लिए दे

खुशियां दे कि मैं बांट सकूं अहले-जमीं को
और दर्द मुझे दिल में छुपाने के लिए दे

सेराब करे दश्त को जो अपने लहू से
ऐसा कोई किरदार निभाने के लिए दे

1 comment:

  1. bahut sundar prastuti..

    जुगनू कोई जुल्मत मिटाने के लिए दे
    इक ख्वाब तो आंखों में सजाने के लिए दे

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