काशी यानी बनारस में गंगातट पर पुराण प्रसिद्ध श्मशान मणिकर्णिका घाट। कहते हैं कि जब भगवान शिव सती का शव कांधे पर लिए बेचैन भटक रहे थे तो उनके कान की मणि यहीं गिरी थी। सो मणिकर्णिका। इस श्मशान में कभी चिता की आग नहीं बुझती- शवों का तांता लगा रहता है रातदिन। यहां के डोम "राजा" कहे जाते हैं। मणिकर्णिका पर विपुल साहित्य है और कविताएं भी। बांग्ला कवि शंख घोष से लेकर हिंदी कवि ज्ञानेंद्रपति तक। प्रस्तुत है कवि श्रीकांत वर्मा के "मगध" संग्रह की कविता "मणिकर्णिका का डोम"...
।। मणिकर्णिका का डोम।।
श्रीकांत वर्मा
डोम मणिकर्णिका से अक्सर कहता है
दुखी मत होओ
मणिकर्णिका,
दुख तुम्हें शोभा नहीं देता
ऐसे भी श्मशान हैं
जहां एक भी शव नहीं आता
आता भी है
तो गंगा में
नहलाया नहीं जाता
डोम इसके सिवा कह भी
क्या सकता है
एक अकेला
डोम ही तो है
मणिकर्णिका में अकेले
रह सकता है
दुखी मत होओ मणिकर्णिका,
दुख मणिकर्णिका के
विधान में नहीं
दुख उनके माथे है
जो पहुंचाने आते हैं
दुख उनके माथे था
जिसे वे छोड़ चले जाते हैं
भाग्यशाली हैं, वे
जो लदकर या लादकर
काशी आते हैं
दुख
मणिकर्णिका को सौंप जाते हैं
दुखी मत होओ
मणिकर्णिका,
दुख हमें शोभा नहीं देता
ऐसे भी डोम हैं
शव की बाट जोहते
पथरा जाती हैं जिनकी आंखें,
शव नहीं आता-
इसके सिवा डोम कह भी क्या सकता है!
अपने में गहरा अर्थ समेटे हुए सुन्दर रचना साँझा करने के लिए आभार
ReplyDeleteऐसे भी डोम हैं
ReplyDeleteशव की बाट जोहते
पथरा जाती हैं जिनकी आंखें,
शव नहीं आता-
इसके सिवा डोम कह भी क्या सकता है!....
.....मुझे प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' याद आ गयी.....
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विलुप्त होती... .....नानी-दादी की पहेलियाँ.........परिणाम..... ( लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....)
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html
सुन्दर रचना
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