साथ-साथ

Tuesday, February 23, 2010

धूप में घुलती सिसकी

धूप निकलती है
बुधुआ बखरी के गोरू
सिवान की ओर हांकता है
जोखू सँभालते हैं फावड़ा
और मंगरी उठाती है खुरपी
इतने में
छः साल की रधिया के सामने से
कलेवा की बासी रोटी
झपट कर भागती है
बिल्ली

रधिया रोने लगती है
तभी उसके नकबहने चेहरे पर
पड़ता है
मंगरी का झन्नाटेदार झापड़

वह एकबारगी घिघिया उठती है
जोखू मंगरी को गरियाते हैं
और साली छिनाल तक कह जाते हैं

फिर दोनों मुंह फुलाये
मालिक के खेत का रास्ता
पकड़ते हैं
रधिया की सिसकी
धीरे - धीरे
धूप में घुलती जाती है
धूप तेज होती है
और गर्मी चढ़ती जाती है.

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