साथ-साथ

Tuesday, January 12, 2010

मध्यवर्गी का मर्सिया

देखो - देखो, खुशफहमी की मार
मैं मर गया !
जीवित रही नौकरी मेरी
मेरा ओहदा, मेरा रुतबा, दुनियादारी
जीवित रही दुश्मनी - यारी
मैं मर गया !

मैं जीवित था
जब तक नहीं गया उस तने हुए शामियाने के अन्दर
मैं जीवित था
जब तक सीखी नहीं गुदगुदी जगाने वाली भाषा
इसको - उसको - सबको खुश करने में
खुशफहमी की मार - मैं मर गया !

मुझे मारकर जीवित रहा समाज
मुझे मारकर चलते सारे कामकाज
मेरे जीते - जी सभी रहे नाराज

देखो - देखो, तने हुए शामियाने के अन्दर
मुझे मारकर उसमे उत्सव चले निरंतर ...! 

1 comment:

  1. ये है सिद्धांत और स्वाभिमान की मौत! यही है दुनियादारी, जिसपर पल रही है दुनिया सारी।

    ReplyDelete