संवेदनशील लेखक-पत्रकार रत्नेश कुमार रहने वाले बिहार के हैं और नौकरी गुवाहाटी में करते हैं। नेकदिल इंसान हैं और गहरी सामाजिक समझ है उनके पास। उन्होंने अपने ढंग की विधा विकसित की है- संवाद कथा। ये संवाद कथाएं लगभग सूक्तियों जैसा असर छोड़ती हैं। प्रस्तुत हैं उनकी कुछ संवाद कथाएं...
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- रिश्वत से अपना रिश्ता रक्त का है।
- अपना भक्त का।
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- गांधी प्राणी के डॉक्टर हैं।
- माक्र्स?
- प्रणाली के।
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- भोजपुरी हिंदी की अनपढ़ बहन है।
- हिंदी?
- संस्कृत की सातवीं पास बेटी।
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- सच बोलो न, बहुत सुख मिलता है।
- सुविधा तो झूठ बोलने से मिलती है।
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- कछुआ और खरगोश की कहानी पढ़ी है?
- कलम और कंप्यूटर को देखकर याद आ रही है, न।
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- भय के हाथ में कुछ था।
- हां, भगवान का पता।
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- पति-पत्नी में प्रेम कम होता है।
- अधिक क्या होता है?
- पैंतरा।
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- इस पथ पर जब देखो- नो एंट्री।
- महात्मा गांधी पथ है, न।
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- हंसी और मक्कारी सौत थीं।
- थीं यानी?
- आज सखी हैं।
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- वर जातिवाचक संज्ञा है, न?
- नहीं, द्रव्यवाचक संज्ञा।
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- वतन और वेतन दोनों में एक चुनने को बोला जाए तो लोग बोलेंगे वतन, किंतु लेंगे वेतन।
- यही तो अपना चरित्र है, मित्र।
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- एक भ्रष्ट व्यक्ति : बिना अतिरिक्त मन रिक्त रहता है।
- दूसरा भ्रष्ट व्यक्ति : तिक्त भी।
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- हिंसा की हंसी सुन रहे हो, न?
- मैं तो अहिंसा की रूलाई भी सुन रहा हूं।
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