पहले ही जान लें कि यह कविता स्वामी रामदेव के बारे में नहीं है। यह कविता बाबा नागार्जुन की है- पानी के किनारे अपने आहार की प्रतीक्षा में घ्यान-धैर्य की प्रतिमूर्ति बने बगुला पक्षी के बारे में। कविता पढि.ए और याद कीजिए कि ऐसी विलक्षण कविताएं बाबा ही लिख सकते थे...
ध्यानमग्न वक-शिरोमणि/ नागार्जुन
ध्यानमग्न
वक-शिरोमणि
पतली टांगों के सहारे
जमे हैं झील के किनारे
जाने कौन हैं इष्टदेव आपके!
इष्टदेव हैं आपके
चपल-चटुल लघु-लघु मछलियां...
चांदी-सी चमकती मछलियां...
फिसलनशील, सुपाच्य...
सवेरे-सवेरे आप
ले चुके हैं दो बार
अपना अल्पाहार!
आ रहे हैं जाने कब से
चिंतन मध्य मत्स्य-शिशु
भगवानू नीराकार!
मनाता हूं मन ही मन,
सुलभ हो आपको अपना शिकार
तभी तो जमेगा
आपका माध्यांदिन आहार
अभी तो महोदय, आप
डटे रहो इसी प्रकार
झील के किनारे
अपने इष्ट के ध्यान में!
अनोखा है
आपका ध्यान-योग!
महोदय, महामहिम!!
नागर्जुन के क्या कहने!
ReplyDeleteइस जबरदस्त रचना को पढवाने का आभार।
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ब्लॉग समीक्षा की 23वीं कड़ी।
अल्पना वर्मा सुना रही हैं समाचार..।