अपनी शायरी के बारे में मशहूर शायर जनाब कैफ भोपाली इस गजल के आखिर में कहते हैं- गम की बात को भी खुशी के मूड में लिखने का खास अंदाज कैफ के साथ है। अब पढि़ए यह गजल-
कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ,
अब ये किवाड़ बंद करो खामुशी के साथ।
साया है कम खजूर के ऊंचे दरख्त का,
उम्मीद बांधिए न बड़े आदमी के साथ।
चलते हैं बचके शेखो-बरहमन के साए से,
अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ।
शाइस्तगाने-शहर मुझे ख्वाह कुछ कहें,
सड़कों का हुस्न है मेरी आवारगी के साथ।
लिखता है गम की बात मसर्रत के मूड में,
मख्सूस है ये तर्ज फकत कैफ ही के साथ।
कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ,
अब ये किवाड़ बंद करो खामुशी के साथ।
साया है कम खजूर के ऊंचे दरख्त का,
उम्मीद बांधिए न बड़े आदमी के साथ।
चलते हैं बचके शेखो-बरहमन के साए से,
अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ।
शाइस्तगाने-शहर मुझे ख्वाह कुछ कहें,
सड़कों का हुस्न है मेरी आवारगी के साथ।
लिखता है गम की बात मसर्रत के मूड में,
मख्सूस है ये तर्ज फकत कैफ ही के साथ।
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