नए दौर के गीतकार-कवियों में सुधांशु उपाध्याय एक जाना-पहचाना नाम हैं। प्यार में क्या कुछ खोकर क्या कुछ पाया जाता है, पढि़ए उनके इस गीत में-
नाम तुम्हारा/सुधांशु उपाध्याय
सबकुछ खोकर सब पा जाता
एक तुम्हें पा जाने में।
पहरों-पहरों फाइल ओढ़े
नाखूनों से काठ खुरचते
नाम तुम्हारा लिख डाला है
टेबुल पर अनजाने में।
शहरों से क्या रिश्ता जोड़ा
लोकधुनों ने मुंह ही मोड़ा
अपनी आंखें दगा दे गईं
अपनी लाज बचाने में।
दिन में मोम बने रहते हैं
रातों में जलना पड़ता है
खुद को बर्फ बनाकर देखा
रोज सुबह गलना पड़ता है
कितना कुछ सहना होता है
दर्पण से बतियाने में।
सबकुछ खोकर सब पा जाता
एक तुम्हें पा जाने में...।
नाम तुम्हारा/सुधांशु उपाध्याय
सबकुछ खोकर सब पा जाता
एक तुम्हें पा जाने में।
पहरों-पहरों फाइल ओढ़े
नाखूनों से काठ खुरचते
नाम तुम्हारा लिख डाला है
टेबुल पर अनजाने में।
शहरों से क्या रिश्ता जोड़ा
लोकधुनों ने मुंह ही मोड़ा
अपनी आंखें दगा दे गईं
अपनी लाज बचाने में।
दिन में मोम बने रहते हैं
रातों में जलना पड़ता है
खुद को बर्फ बनाकर देखा
रोज सुबह गलना पड़ता है
कितना कुछ सहना होता है
दर्पण से बतियाने में।
सबकुछ खोकर सब पा जाता
एक तुम्हें पा जाने में...।
सबकुछ खोकर सब पा जाता
ReplyDeleteएक तुम्हें पा जाने में---
बड़ी ही प्यारी लाइनें हैं।
सबकुछ खोकर सब पा जाता
ReplyDeleteएक तुम्हें पा जाने में...।
-बहुत सुन्दर!!