सहज-सरल भाषा में भी मर्मस्पर्शी गहन अर्थ पैदा किया जा सकता है। इसके उदाहरण हैं चर्चित कवि सत्यनारायण के गीत व कविताएं। पढि़ए, ढलती उम्र के प्रेम को व्यक्त करने वाला सत्यनारायण का यह गीत-
बढ़ी उम्र का गीत/सत्यनारायण
घंटी बजी, और फोन पर
मैंने हलो कहा।
वही, वही बिल्कुल
पहले जैसी ही धुली-धुली
उधर हंसी तुम और इधर
बगुलों की पांख खुली
बंधी झील में सहसा
पूरनमासी गई नहा।
होठों पर होंगी अब भी
कुछ बातें रुकी-रुकी
हर सवाल पर बड़ी-बड़ी
दो आंखें झुकी-झुकी
मन को मन से पढऩे का
वह अपना रंग रहा।
बढ़ी उम्र ने खींची ही होंगी
कुछ रेखाएं
बाल सफेद हुए होंगे
शायद दाएं-बाएं
फिर भी होगा वही चेहरा
था जो कभी रहा।
सुनो, कहां पूरा हो पाता है
अपना होना
खाली ही रह जाता है
मन का कोई कोना
बहुत अकेला कर ही देता है
कोई लमहा।
घंटी बजी और फोन पर
मैंने हलो कहा...
बढ़ी उम्र का गीत/सत्यनारायण
घंटी बजी, और फोन पर
मैंने हलो कहा।
वही, वही बिल्कुल
पहले जैसी ही धुली-धुली
उधर हंसी तुम और इधर
बगुलों की पांख खुली
बंधी झील में सहसा
पूरनमासी गई नहा।
होठों पर होंगी अब भी
कुछ बातें रुकी-रुकी
हर सवाल पर बड़ी-बड़ी
दो आंखें झुकी-झुकी
मन को मन से पढऩे का
वह अपना रंग रहा।
बढ़ी उम्र ने खींची ही होंगी
कुछ रेखाएं
बाल सफेद हुए होंगे
शायद दाएं-बाएं
फिर भी होगा वही चेहरा
था जो कभी रहा।
सुनो, कहां पूरा हो पाता है
अपना होना
खाली ही रह जाता है
मन का कोई कोना
बहुत अकेला कर ही देता है
कोई लमहा।
घंटी बजी और फोन पर
मैंने हलो कहा...
सुनो, कहां पूरा हो पाता है
ReplyDeleteअपना होना
खाली ही रह जाता है
मन का कोई कोना
बहुत अकेला कर ही देता है
कोई लमहा।
घंटी बजी और फोन पर
मैंने हलो कहा...
..sab arman pure ho jaay yah jindagi mein sabke liye kahan sambhav ho paaya hai..
..samay ke saath kaun kitna saath deta hai yah aboojh paheli hai....
bahut hi samvendansheel prastuti ke liye aabhar
बहुत सुन्दर. धन्यवाद अरविंद जी.
ReplyDeleteहोठों पर होंगी अब भी
ReplyDeleteकुछ बातें रुकी-रुकी
हर सवाल पर बड़ी-बड़ी
दो आंखें झुकी-झुकी
मन को मन से पढऩे का
वह अपना रंग रहा।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई