जैसे ही कोई अपनी प्रकृति छोड़ता है, गुलामी के घेरे में आ जाता है। इसे ही कहते हैं अपना सर्वस्व खो देना। पढि़ए चर्चित कवि-पत्रकार अनिल विभाकर की यह कविता-
तोता/अनिल विभाकर
बिल्कुल साफ-साफ बोलता है तोता
सुबह-सुबह रटने लगता है सीताराम...सीताराम
बोलने लगता है कटोरे-कटोरे
पिंजरे में कैद होने से पहले
उसे नहीं मालूम था यह नाम
नहीं आश्रित था किसी पर पेट भरने के लिए
इससे पहले पूरा आकाश उसका था
पूरी धरती थी उसकी
फलों से लदी हर डाली उसकी पहुंच में थी
कोई जरूरत नहीं थी किसी का नाम जपने की
तोता जबसे लेने लगा है यह नाम
तभी से वह कैद है पिंजरे में
उसने जबसे सीखी है आदमी की भाषा
बिल्कुल अलग हो गई है उसकी दुनिया
अलग-थलग हो गया है वह अपनी जमात से
पिंजरे में बंद तोता
फुटपाथ पर बैठ निकालने लगा है भविष्यफल
जबसे सीखा है उसने यह काम
वह और जकड़ गया है पिंजरे में
सीताराम रटने वाला तोता
पिंजरे से बाहर आकर निकालता है भविष्यफल
जाहिर है पिंजरे में नहीं है कोई भविष्य
आश्चर्य है बाहर आकर भी
वह फिर चला जाता है पिंजरे में खुद-ब-खुद
जबसे सीखा है उसने यह काम
वह भूल गया है अपनी दुनिया
तबसे वह भी फुटपाथ पर है
उसका मालिक भी
तोता वंचित हो गया है
पेड़ों में लगे पहले फल के स्वाद-सुख से
जीवन-सुख से भी।
तोता/अनिल विभाकर
बिल्कुल साफ-साफ बोलता है तोता
सुबह-सुबह रटने लगता है सीताराम...सीताराम
बोलने लगता है कटोरे-कटोरे
पिंजरे में कैद होने से पहले
उसे नहीं मालूम था यह नाम
नहीं आश्रित था किसी पर पेट भरने के लिए
इससे पहले पूरा आकाश उसका था
पूरी धरती थी उसकी
फलों से लदी हर डाली उसकी पहुंच में थी
कोई जरूरत नहीं थी किसी का नाम जपने की
तोता जबसे लेने लगा है यह नाम
तभी से वह कैद है पिंजरे में
उसने जबसे सीखी है आदमी की भाषा
बिल्कुल अलग हो गई है उसकी दुनिया
अलग-थलग हो गया है वह अपनी जमात से
पिंजरे में बंद तोता
फुटपाथ पर बैठ निकालने लगा है भविष्यफल
जबसे सीखा है उसने यह काम
वह और जकड़ गया है पिंजरे में
सीताराम रटने वाला तोता
पिंजरे से बाहर आकर निकालता है भविष्यफल
जाहिर है पिंजरे में नहीं है कोई भविष्य
आश्चर्य है बाहर आकर भी
वह फिर चला जाता है पिंजरे में खुद-ब-खुद
जबसे सीखा है उसने यह काम
वह भूल गया है अपनी दुनिया
तबसे वह भी फुटपाथ पर है
उसका मालिक भी
तोता वंचित हो गया है
पेड़ों में लगे पहले फल के स्वाद-सुख से
जीवन-सुख से भी।
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