एक सिपाही के जीवन की करुण परिणति के जरिए युद्ध की व्यर्थता बताने वाली यह कविता विम्मी सदारंगानी की है। पढि़ए कविता-
जब वह दिन आता है /विम्मी सदारंगानी
जब वह दिन आता है
सिपाही अपनी मां के पैर छूता है
पत्नी की ओर स्नेह से निहारता है
अपने बच्चे की पेशानी चूमता है...
जब वह दिन आता है
सिपाही मौत का सामान साथ ले निकलता है
बम और मिसाइल अपने गले से बांधता है
स्वयं को सख्तदिल दिखाने की कोशिश करता है...
जब वह दिन आता है
सिपाही लड़ाई के मैदान में पहुंचता है
अपने वतन की रक्षा के लिए
दूसरे वतन के सिपाही से लड़ता है...
जब वह दिन आता है
दिन गुजरता है, रात गुजरती है
धरती लाल होती है,
आसमान भी लाल होता है
और लाल रंग के अलावा कुछ भी नहीं बचता...
जब वह दिन आता है
सिपाही आंखें मूंदकर मुस्कराता है
वह दुनिया में शांति लाने के लिए जीता है
वह दुनिया में शांति लाने के लिए जंग करता है
वह दुनिया में शांति लाने के लिए मरता है
और आखिर शांति की दुनिया में चला जाता है
जब वह दिन आता है...
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