1964 में रायपुर के हुरा गांव में जन्मे एकांत श्रीवास्तव का काव्य संसार एक बीज की तरह विकसित होकर सघन और समृद्ध हुआ है। ग्रामीण पृष्ठïभूमि से निकले एकांत की कविता का फलक व्यापक हुआ है और उनकी बहुतेरी कविताओं में अपनी जड़ों से शिद्दत से जुड़े रहने की ललक व बेचैनी दिखाई देती है। पढि़ए यह कविता-
एक बीज की आवाज पर/ एकांत श्रीवास्तव
बीज में पेड़
पेड़ में जंगल
जंगल में सारी वनस्पति पृथ्वी की
और सारी वनस्पति एक बीज में
सैकड़ों चिडिय़ों के संगीत से भरा भविष्य
और हमारे हरे-भरे दिन लिए
चीखता है बीज
पृथ्वी के गर्भ के नीम अंधेरे में-
इस बार पानी में सबसे पहले मैं भीगूं
बारिश की पहली फुहार की उंगली पकड़ कर
मैं बाहर आऊं
तुम्हारी दुनिया में
दुनिया एक बीज की आवाज पर टिकी है।
एक बीज की आवाज पर/ एकांत श्रीवास्तव
बीज में पेड़
पेड़ में जंगल
जंगल में सारी वनस्पति पृथ्वी की
और सारी वनस्पति एक बीज में
सैकड़ों चिडिय़ों के संगीत से भरा भविष्य
और हमारे हरे-भरे दिन लिए
चीखता है बीज
पृथ्वी के गर्भ के नीम अंधेरे में-
इस बार पानी में सबसे पहले मैं भीगूं
बारिश की पहली फुहार की उंगली पकड़ कर
मैं बाहर आऊं
तुम्हारी दुनिया में
दुनिया एक बीज की आवाज पर टिकी है।
दुनिया एक बीज की आवाज पर टिकी है।
ReplyDeleteसत्य कहा आपने बीज पर ही सब आधारित है| भावपूर्ण रचना बधाई