कुछ गजलें प्रार्थना के शिल्प में एक पुकार की तरह भी हो सकती हैं। ऐसी कुछ गजलें जाने-माने शायर कुमार पाशी ने भी लिखी हैं। पढि़ए उनकी यह गजल-
गजल/कुमार पाशी
जुगनू कोई जुल्मत मिटाने के लिए दे
इक ख्वाब तो आंखों में सजाने के लिए दे
ले चाक किए लेता हूं मैं अपना गिरेबां
अब दश्त मुझे खाक उड़ाने के लिए दे
हर पेड़ को शाखें कभी सरसब्ज अता कर
हर शाख को कुछ फूल सजाने के लिए दे
इक नूर फजा में है तो इक रंग हवा में
मंजर ये मुझे सबको दिखाने के लिए दे
खुशियां दे कि मैं बांट सकूं अहले-जमीं को
और दर्द मुझे दिल में छुपाने के लिए दे
सेराब करे दश्त को जो अपने लहू से
ऐसा कोई किरदार निभाने के लिए दे
गजल/कुमार पाशी
जुगनू कोई जुल्मत मिटाने के लिए दे
इक ख्वाब तो आंखों में सजाने के लिए दे
ले चाक किए लेता हूं मैं अपना गिरेबां
अब दश्त मुझे खाक उड़ाने के लिए दे
हर पेड़ को शाखें कभी सरसब्ज अता कर
हर शाख को कुछ फूल सजाने के लिए दे
इक नूर फजा में है तो इक रंग हवा में
मंजर ये मुझे सबको दिखाने के लिए दे
खुशियां दे कि मैं बांट सकूं अहले-जमीं को
और दर्द मुझे दिल में छुपाने के लिए दे
सेराब करे दश्त को जो अपने लहू से
ऐसा कोई किरदार निभाने के लिए दे
bahut sundar prastuti..
ReplyDeleteजुगनू कोई जुल्मत मिटाने के लिए दे
इक ख्वाब तो आंखों में सजाने के लिए दे