दिवंगत पत्रकार साथी आलोक तोमर की याद के उमड़ते-घुमड़ते आवेग को तिनके का सहारा देती वरिष्ठ कवि भगवत रावत की यह कविता याद आ रही है। आलोक भी मध्य प्रदेश के थे और भगवत रावत भी मध्य प्रदेश के ही हैं। पढि़ए कविता-
उसकी चुप में/ भगवत रावत
एक चलता-फिरता हंसता-बोलता आदमी
कभी नहीं सोचता कि उसके जीवन में
एक दिन ऐसा आएगा
जब उसकी हंसी पर ताला लग जाएगा
वह मुसीबतों से नहीं डरता
लडऩे से नहीं घबराता
यहां तक कि कई बार
मौत को घर से बाहर धकेल चुका होता है
ऐसा आदमी जब किसी दिन अचानक
चुप हो जाता है
तो एक बहुत जरूरी आवाज
हवा में घुलने से रह जाती है
जैसे आटे में घुलना छोड़ दे नमक
फेफड़ों में ऑक्सीजन
और आंखों में प्रेम
फिर इसके बाद
कहां क्या-क्या होने से रह जाएगा
यह कौन किसको बता पाएगा
यह तो वह खुद भी नहीं जानता
कि हवा में घुली हुई उसकी हंसी
किन बंद दरवाजों को खोलती थी
मैं नहीं जानता
ऐसी हालत में क्या किया जाना चाहिए
सिवा इसके कि थोड़ी देर के लिए
उसकी चुप में शामिल हो जाना चाहिए।
उसकी चुप में/ भगवत रावत
एक चलता-फिरता हंसता-बोलता आदमी
कभी नहीं सोचता कि उसके जीवन में
एक दिन ऐसा आएगा
जब उसकी हंसी पर ताला लग जाएगा
वह मुसीबतों से नहीं डरता
लडऩे से नहीं घबराता
यहां तक कि कई बार
मौत को घर से बाहर धकेल चुका होता है
ऐसा आदमी जब किसी दिन अचानक
चुप हो जाता है
तो एक बहुत जरूरी आवाज
हवा में घुलने से रह जाती है
जैसे आटे में घुलना छोड़ दे नमक
फेफड़ों में ऑक्सीजन
और आंखों में प्रेम
फिर इसके बाद
कहां क्या-क्या होने से रह जाएगा
यह कौन किसको बता पाएगा
यह तो वह खुद भी नहीं जानता
कि हवा में घुली हुई उसकी हंसी
किन बंद दरवाजों को खोलती थी
मैं नहीं जानता
ऐसी हालत में क्या किया जाना चाहिए
सिवा इसके कि थोड़ी देर के लिए
उसकी चुप में शामिल हो जाना चाहिए।
बहुत दुखद घटना | आलोक जी को श्रधांजलि
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