ताज भोपाली का इंतकाल हुए 33 बरस हो रहे हैं- 12 अप्रैल, 1978 को वे अलविदा कह गए थे। उनको याद करते हुए पढि.ए उनकी ये दो गजलें, जो आज के वक्त में भी उतनी ही मौजूं और जरूरी हैं...
एक
ऐ चिंगारी राख न बन
फूंक दे मेरा ही दामन।
तुझसे वफा की उम्मीदें
देख मेरा दीवानापन।
हम दुखियों से हंसकर मिल
क्या जोबन क्या मायाधन।
मुझमें अपना अक्स न देख
मैं हूं इक टूटा दरपन।
दो
कश्मीर से ताराजे-दकन चीख रहे हैं
सूरज है कहां अहले-वतन चीख रहे हैं।
वो शोर है हर शहर की हर राहगुजर पर
रंगीन लिबासों में बदन चीख रहे हैं।
ये कौन सी बरखा है बरसना है न खुलना
ऐ अब्र सभी सर-ओ-समन चीख रहे हैं।
ऐ गुलबदनो, कोई महकता हुआ झोंका,
हम भी पसे-दीवारे-चमन चीख रहे हैं।
एक
ऐ चिंगारी राख न बन
फूंक दे मेरा ही दामन।
तुझसे वफा की उम्मीदें
देख मेरा दीवानापन।
हम दुखियों से हंसकर मिल
क्या जोबन क्या मायाधन।
मुझमें अपना अक्स न देख
मैं हूं इक टूटा दरपन।
दो
कश्मीर से ताराजे-दकन चीख रहे हैं
सूरज है कहां अहले-वतन चीख रहे हैं।
वो शोर है हर शहर की हर राहगुजर पर
रंगीन लिबासों में बदन चीख रहे हैं।
ये कौन सी बरखा है बरसना है न खुलना
ऐ अब्र सभी सर-ओ-समन चीख रहे हैं।
ऐ गुलबदनो, कोई महकता हुआ झोंका,
हम भी पसे-दीवारे-चमन चीख रहे हैं।
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