चूंकि यह एकल परिवार का जमाना है यानी पति-पत्नी और बच्चा या बच्चे, इसलिए अब खासकर शहरों में संयुक्त परिवार की याद एक आह भरी स्मृति बनकर रह गई है। कविता में इसकी हाहाकारी गूंज-अनुगूंज अनेक आवाजों में सुनाई पड़ती है। जैसे वरिष्ठ और बुजुर्ग कथाकार-कवि रामदरश मिश्र की यह कविता-
परिवार/रामदरश मिश्र
कल तक हम परिवार थे
एक-दूसरे की आंखों में
अपने को पढ़ते हुए
एक-दूसरे के ओठों पर
अपनी हंसी रचते हुए
हमारे किवाड़ों पर
जब हमारी अंगुलियों की थाप पड़ती थी
तब घर के भीतर बिछी हुई उत्सुक प्रतीक्षाएं
सितार के तारों की तरह झनझना उठती थीं
और किवाड़ों के पास आकर
वे थाप में समा जाती थीं
पूरा आंगन चिडिय़ों की चहचहाहट से भर जाता था
एक की नींद टूटती थी
तो सपने दूसरे की आंखों में उग आते थे
इंद्रधनुष की तरह
उठा हुआ एक हाथ
शाम की तरह गिरता था
तो दूसरे हाथ उठ जाते थे सुबह की तरह
एक पांव जमता था बर्फ की तरह
तो दूसरे पांवों से नदी बह चलती थी
खिड़की चाहे किसी ओर हो
हर कमरे का मुंह आंगन में ही खुलता था
भिन्न-भिन्न रंगों के होकर भी हम उद्यान थे
अलग-अलग होकर भी हमारे स्वर सहगान थे
आज हम एक ही मतपेटी में पड़े हुए
अलग-अलग दलों के वोट हैं
व्यक्ति से मुहर बने हुए
साथ-साथ रहते हुए भी
एक-दूसरे से तने हुए।
परिवार/रामदरश मिश्र
कल तक हम परिवार थे
एक-दूसरे की आंखों में
अपने को पढ़ते हुए
एक-दूसरे के ओठों पर
अपनी हंसी रचते हुए
हमारे किवाड़ों पर
जब हमारी अंगुलियों की थाप पड़ती थी
तब घर के भीतर बिछी हुई उत्सुक प्रतीक्षाएं
सितार के तारों की तरह झनझना उठती थीं
और किवाड़ों के पास आकर
वे थाप में समा जाती थीं
पूरा आंगन चिडिय़ों की चहचहाहट से भर जाता था
एक की नींद टूटती थी
तो सपने दूसरे की आंखों में उग आते थे
इंद्रधनुष की तरह
उठा हुआ एक हाथ
शाम की तरह गिरता था
तो दूसरे हाथ उठ जाते थे सुबह की तरह
एक पांव जमता था बर्फ की तरह
तो दूसरे पांवों से नदी बह चलती थी
खिड़की चाहे किसी ओर हो
हर कमरे का मुंह आंगन में ही खुलता था
भिन्न-भिन्न रंगों के होकर भी हम उद्यान थे
अलग-अलग होकर भी हमारे स्वर सहगान थे
आज हम एक ही मतपेटी में पड़े हुए
अलग-अलग दलों के वोट हैं
व्यक्ति से मुहर बने हुए
साथ-साथ रहते हुए भी
एक-दूसरे से तने हुए।
अत्यन्त ही खूबसूरती से आपने संयुक्त परिवारों से एकल परिवार के विरोधाभास को प्रस्तुत किया है । आभार...
ReplyDeleteब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?
अरे... रे... आकस्मिक आक्रमण होली का !
Sahi kaha.
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का विनम्र प्रयास।