साथ-साथ

Wednesday, March 2, 2011

बैटरी का हनुमान उठा रहा है प्लास्टिक का पहाड़

इसी वर्ष अपनी कथाकृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित बहुचर्चित लेखक उदय प्रकाश सर्वाधिक पठित, प्रशंसित और लोकप्रिय कथाकार तो हैं ही, लेकिन वे मूलत: और प्रथमत: कवि ही हैं। पढि़ए उनकी एक कविता-

बचाओ /उदय प्रकाश

चिंता करो मूर्धन्य- ष की
किसी तरह बचा सको तो बचा लो- ङ
देखो, कौन चुराकर लिए चला जा रहा है खड़ी पाई
और वर्णमाला के सारे अंक
जाने कहां चला गया ऋषियों का- ऋ

चली आ रही है इस्पात, फाइबर और अज्ञात यौगिक
धातुओं की तमाम अपरिचित-अभूतपूर्व चीजें
किसी विस्फोट के बादल की तरह हमारे संसार में
बैटरी का हनुमान उठा रहा है प्लास्टिक का पहाड़
और बच्चों के हाथों में बोल रही है कोई
डरावनी चीज- डींप...डींप...डींप...

बचा लो मेरी नानी का पहियों वाला काठ का नीला घोड़ा
संभाल कर रखो अपने लट्टू
पतंगें छुपा दो किसी सुरक्षित जगह पर

देखो...हिलता है पृथ्वी पर
अमरूद का अंतिम पेड़
उड़ते हैं आकाश में पृथ्वी के अंतिम तोते

बताएं सारे विद्वान
मैं कहां पर टांग दूं अपने दादा की मिरजई
किस संग्रहालय को भेजूं पिता का बसूला
मां का करधन और बहन के बिछुए मैं
किस सरकार को सौंपूं हिफाजत के लिए

मैं अपील करता हूं राष्ट्रपति से कि
वे घोषित करें
खिचड़ी, ठठेरा, मदारी, लोहार, किताब, भड़भूजा,
कवि और हाथी को
विलुप्तप्राय राष्ट्रीय प्राणी

वैसे खड़ाऊं, दातून और पीतल के लोटे को
बचाने की इतनी सख्त जरूरत नहीं है
रथ, राजकुमारी, धनुष, ढाल और तांत्रिकों के
संरक्षण के लिए भी किसी कानून की जरूरत नहीं है इतनी

बचाना ही हो तो बचाए जाने चाहिए
गांव में खेत, जंगल में पेड़, शहर में हवा,
पेड़ों में घोंसले, अखबारों में सच्चाई, राजनीति में
सिद्धांत, प्रशासन में मनुष्यता, दाल में हल्दी

क्या कुम्हार, धर्मनिरपेक्षता और
एक-दूसरे पर भरोसे को बचाने के लिए
नहीं किया जा सकता संविधान में संशोधन

सरदार जी आप तो बचाइए अपनी पगड़ी
और पंजाब का टप्पा
मुल्ला जी, उर्दू के बाद आप फिक्र करें शोरबे का
जायका बचाने की

इधर मैं एक बार फिर करता हूं प्रयत्न
कि बच सके तो बच जाए हिंदी में कविता।

No comments:

Post a Comment