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Thursday, February 24, 2011

आना ही चाहिए कोई नया मोड़

समकालीन हिन्दी कविता को पहाड़ यानी उत्तराखंड ने जो तीन महत्वपूर्ण कवि दिए हैं, वह त्रयी है- लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल और वीरेन डंगवाल की। पहाड़ की प्रकृति निश्चय ही बहुत आकर्षक और मुग्धकारी है, लेकिन ये तीनों कवि जीवन सौंदर्य और संघर्ष के कवि हैं। पढि़ए लीलाधर जगूड़ी की यह कविता...

मोड़/लीलाधर जगूड़ी
ऐसे मैदान जिनमें रास्ते नहीं होते
भाग्यहीन व्यक्ति की तरह लगते हैं
ऐसे रास्ते जिनमें पेड़ नहीं होते
कर्महीन जीवन की तरह लगते हैं

जो रास्ते सड़क बन जाते हैं वे मुझे पुरखों की तरह याद आते हैं
देखता हूं कि कितना सुंदर था उन कुछ कठिन रास्तों का भविष्य

कितनी सुंदर है यह सड़क
और इससे भी ज्यादा सुंदर हैं इसके मोड़
मोड़ पर ओझल होते हुए कुछ लोग
कहां जाते हुए कौन रहे होंगे वे
शायद उन्होंने ही बनाई हो यह सड़क

उनमें से कोई जरूर मिलेगा मुझे
भविष्य के किसी जटिल मोड़ पर
मैं जान भी नहीं पाऊंगा कि यही था वह
जो ओझल हो गया था किसी मोड़ पर
बहुत सारे लोगों के साथ

एक और मोड़ पर ओझल हुई थी जो महिला
लड़का जो आते-आते मुड़ गया था
बच्ची जो चौंककर डगमगाती भागी थी
वे सब मिलेंगे मुझे कभी किसी न किसी मोड़ पर
जो बन गया होगा उनकी जिंदगी में
और जिस पर मुडऩा होगा मेरी जिंदगी को

मुझे सुंदर लगते हैं मोड़ चाहे सड़क पर हों, चाहे वृक्ष में
चाहे जिंदगी में
इन्हीं में से होते हैं कुछ अच्छे कुछ खराब
कुछ विचित्र मोड़
जिनके बिना कुछ दूर तक ही अच्छी लगती है सपाट सड़क

फिर आना ही चाहिए कोई नया मोड़
आना ही चाहिए कोई नया मोड़
बस आता ही होगा कोई नया मोड़
आता ही होगा कोई नया मोड़।

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