tag:blogger.com,1999:blog-3341219249258250435.post1357935082935139941..comments2023-04-16T08:17:38.337-07:00Comments on जनपद: दीवारें टूटेंगीअरविन्द चतुर्वेदhttp://www.blogger.com/profile/12754065083727268466noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3341219249258250435.post-17031379258248193192010-01-31T07:28:29.795-08:002010-01-31T07:28:29.795-08:00बहुत अच्छी रचना...बधाईबहुत अच्छी रचना...बधाईAjAy ShArMahttps://www.blogger.com/profile/12348036880553347847noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3341219249258250435.post-28306972405417410362010-01-30T01:22:28.520-08:002010-01-30T01:22:28.520-08:00वह तोड़ती पत्थर , इलाहाबाद के पथ पर . इस कविता को ...वह तोड़ती पत्थर , इलाहाबाद के पथ पर . इस कविता को पढने के बाद निराला की यह कालजयी पंक्तियाँ याद आ गयीं. .बहुत गरीबी में बचपन बीता. बड़े होने पर पड़ोसी नगर अयोध्या में पत्थरों की झनझनाहट सुनते हुए बड़ा हुआ. अरविंद की कविता पढ़ कर ऐसा लगा कि मेरी ही बात कह दी. यह एक बड़ी कविता है .शेष नारायण सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3341219249258250435.post-65128141053365214492010-01-29T23:43:45.413-08:002010-01-29T23:43:45.413-08:00पत्थर से पत्थर टकराव....बहुत कमाल की सोच....अच्छी ...पत्थर से पत्थर टकराव....बहुत कमाल की सोच....अच्छी ही नहीं बहुत अच्छी रचना...बधाई<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com