साथ-साथ

Wednesday, February 3, 2010

कुर्सी की माया अगम

धवल वस्त्र धारण किये नेता चतुर महान.
पढ़े गरीबी - भुखमरी लिए मधुर मुस्कान..

दिनभर जनता - जाप कर होटल आधी रात.
चार समर्थक साथ में, यह अन्दर की बात..

विकट आपदा आ गयी ऐसा पड़ा अकाल.
नेता-अफसर-सेठ गण करते गोटी लाल..

इस अकाल ने कर दिया सबकुछ बंटाधार.
किस चुनाव की चासनी ए हजूर सरकार..

दर्रा फाड़े खेत हैं, जले - भुने से गाँव.
नेताजी मत आइये होगा ही पथराव..

इस घनघोर अकाल में सूख गए सब ताल.
मंत्रीगण बेचैन हैं चले न बगुला - चाल..

कोटा - परमिट बांटिये नाते - रिश्तेदार.
कुर्सी की माया अगम, दुर्गम है सरकार..

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